India News UP (इंडिया न्यूज़), Mahakumbh 2025: 45 दिनों तक देश-विदेश से श्रद्धालुओं का सैलाब, साधु-संतों का जमावड़ा, और जनवासा में हलचल, अब सब कुछ खामोश हो चुका है। प्रयागराज महाकुंभ के समापन के बाद, संगम नगरी की रौनक धीरे-धीरे गायब हो रही है। 26 फरवरी को महाकुंभ का समापन हुआ, और अब शहर की सड़कों पर जो रौनक हुआ करती थी, वह फीकी हो चुकी है। अब तंबू उखड़ चुके हैं, सड़कें खाली हैं और घाटों से भीड़ गायब हो चुकी है। यह वही जगह है जहां कभी लाखों की संख्या में श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाने के लिए जुटते थे। अब वो सारे दृश्य कहीं खो से गए हैं।
संगम पर अब नहीं दिखती वह भीड़
महाकुंभ के दौरान संगम पर श्रद्धालुओं की भीड़ इतनी थी कि पैदल चलने तक की जगह नहीं बची थी। केसरिया वस्त्र पहने साधु संत, पुलिसकर्मी श्रद्धालुओं को नियंत्रित करते हुए नजर आते थे। लेकिन आज स्थिति बदल चुकी है। संगम पर अब गाड़ियां दौड़ रही हैं, लेकिन वह भव्यता और आकर्षण गायब है। कुछ लोग अभी भी स्नान के लिए आ रहे हैं, लेकिन अब मेला जैसी रौनक नहीं है। संगम नगरी में अब शांति का माहौल है, और कहीं न कहीं इसका असर स्थानीय व्यापारियों और दुकानदारों पर भी पड़ा है।
2037 में लौटेगी रौनक
महाकुंभ के समाप्त होते ही, अब अगले कुंभ की रौनक 12 साल बाद लौटेगी। प्रयागराज में 2037 में फिर से कुंभ का आयोजन होगा। लेकिन इससे पहले, 2027 में नासिक में कुंभ मेले का आयोजन होगा, जिसकी तैयारी अब से शुरू हो चुकी है। 12 साल बाद जब कुंभ वापस आएगा, तो फिर से वही श्रद्धालुओं का रेला, साधु-संतों का जमावड़ा और तंबुओं की कतारें नजर आएंगी। लेकिन तब तक प्रयागराज का माहौल शांति और सादगी से भरा रहेगा।
धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव का एक अध्याय समाप्त
महाकुंभ का समापन होते ही, हर जगह सन्नाटा फैल चुका है। जहां कभी तंबू, शिविर और दुकानों की भरमार होती थी, वहां अब सिर्फ खालीपन है। घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ का दृश्य अब इतिहास बन चुका है। पांटून पुल पर इक्का-दुक्का लोग ही नजर आ रहे हैं। अखाड़ा मार्ग, जो महाकुंभ के दौरान सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र था, अब वीरान सा हो गया है। धूल भरी सड़कें और खाली कैंप अब वहां की शान नहीं रहे।
विभिन्न लोगों की उदासी और संतोष की भावनाएं
कुंभ के समापन के बाद, कुछ श्रद्धालु इस बदलाव को महसूस कर रहे हैं। मेला खत्म होने के बाद, व्यापारियों के चेहरे पर भी मायूसी साफ दिखाई दे रही है। अब दुकानदारी बहुत ढीली हो चुकी है, और अच्छे दिन बहुत दूर नजर आ रहे हैं। महाकुंभ के दौरान तैनात सुरक्षा कर्मी भी अब उस माहौल को याद कर रहे हैं। पहले मेले की भीड़ को देखना बहुत अच्छा लगता था। अब उस भीड़ की कमी महसूस हो रही है।
कुंभ का महत्व और भविष्य की उम्मीद
प्रयागराज में महाकुंभ के बाद अब वो हर्षोल्लास का माहौल नहीं है। लेकिन कुंभ का महत्व सभी ने महसूस किया है। इस मेले के माध्यम से सांस्कृतिक और धार्मिक अनुभव ने लोगों के दिलों में एक विशेष स्थान बना लिया है। चाहे अब यह समय उदासी का हो, लेकिन एक दिन कुंभ वापस लौटेगा। कुंभ का चक्र निरंतर चलता रहेगा, और अगले 12 साल बाद फिर से प्रयागराज में श्रद्धालुओं की रौनक लौटेगी।
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