India News (इंडिया न्यूज़), Chandrabhanu Paswan: उत्तर प्रदेश के मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने शानदार जीत दर्ज की है। बीजेपी प्रत्याशी चंद्रभानु पासवान ने समाजवादी पार्टी (सपा) के अजीत प्रसाद को 60,000 से अधिक वोटों से हराकर ऐतिहासिक जीत हासिल की। इस हार के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी हार स्वीकार कर ली, लेकिन चुनाव में धांधली के आरोप लगाए। आइए बताते कौन है चन्द्रभानु पासवान जिन्होंने सपा को दी करारी शिकश्त।
कौन हैं चंद्रभानु पासवान, जिन्होंने सपा के गढ़ में लहराया भगवा?
बीजेपी ने इस बार पुराने चेहरों को छोड़कर नए उम्मीदवार चंद्रभानु पासवान पर दांव खेला, जो इस चुनाव में मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ। पेशे से वकील चंद्रभानु पासवान पहले दो बार जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं और उनकी पत्नी भी इस समय जिला पंचायत सदस्य हैं।
– 1986 में जन्मे चंद्रभानु पासवान का परिवार साड़ी कारोबार से जुड़ा है।
– वे बीकॉम, एमकॉम और एलएलबी डिग्री धारक हैं।
– 2024 लोकसभा चुनाव में वे बीजेपी के अनुसूचित जाति संपर्क प्रमुख थे।
– उनके पिता बाबा रामलखन दास ग्राम प्रधान हैं।
चंद्रभानु पिछले दो वर्षों से मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय थे, जिससे उन्हें चुनाव में बढ़त मिली।
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अखिलेश का सियासी ‘अवध’ मिशन फेल?
मिल्कीपुर सीट को लेकर सपा बेहद आश्वस्त थी क्योंकि लोकसभा चुनाव में सपा के अवधेश प्रसाद ने बीजेपी के लल्लू सिंह को हराया था। सपा इसे बड़ी उपलब्धि मान रही थी, लेकिन मिल्कीपुर में बीजेपी ने सपा के ‘गर्व’ को मटियामेट कर दिया। इस सीट पर सीएम योगी आदित्यनाथ सहित कई बीजेपी नेताओं ने ताबड़तोड़ प्रचार किया। वहीं, अखिलेश यादव, डिंपल यादव समेत तमाम बड़े सपा नेताओं ने भी अजीत प्रसाद के समर्थन में रैलियां और जनसभाएं कीं, लेकिन नतीजे बीजेपी के पक्ष में गए।
मिल्कीपुर उपचुनाव क्यों हुआ?
मिल्कीपुर सीट सपा के गढ़ मानी जाती रही है। 2022 में सपा के अवधेश प्रसाद विधायक बने, लेकिन 2024 में अयोध्या लोकसभा सीट जीतकर सांसद बनने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया, जिससे उपचुनाव की नौबत आई। मिल्कीपुर में 3.58 लाख मतदाता हैं, जिनमें अनुसूचित जाति और ओबीसी वर्ग की बड़ी संख्या है। पासी समाज (SC) और यादव (OBC) समुदाय सबसे प्रभावी मतदाता समूह हैं। बीजेपी ने पासी समाज के उम्मीदवार को मैदान में उतारकर सटीक रणनीति अपनाई, जो सपा के यादव वोट बैंक के मुकाबले निर्णायक साबित हुई।
क्या संदेश दे रही ये जीत?
– लोकसभा चुनाव में मिली हार का बदला बीजेपी ने ले लिया।
– बीजेपी का ‘डबल इंजन’ विकास मॉडल जनता को पसंद आ रहा है।
– सपा का पारिवारिक राजनीति और जातिगत समीकरणों पर भरोसा काम नहीं आया।