India News(इंडिया न्यूज),Massan ki Holi:काशी, जिसे मोक्ष नगरी कहा जाता है, वहां की मसान की होली सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि मृत्यु और जीवन के गहरे दर्शन को दर्शाने वाला अनूठा उत्सव है। हर साल महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर चिता की राख से खेली जाने वाली यह होली दुनियाभर के लोगों के लिए रहस्य और रोमांच से भरी होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह परंपरा अगर एक बार भी टूट जाए, तो इसका काशी और यहां के जीवनचक्र पर गहरा असर पड़ सकता है?
मसान की होली क्यों है जरूरी?
काशी में माना जाता है कि यहां मृत्यु भी मोक्ष का द्वार खोलती है। महादेव के इस धाम में मृत्यु उत्सव है, न कि शोक। मसान की होली इसी दर्शन का प्रतीक है, जहां मृत्यु की राख को जीवन के रंगों से मिलाया जाता है। यह परंपरा सिखाती है कि मृत्यु अंत नहीं, बल्कि नए जीवन की शुरुआत है। अगर यह अनुष्ठान एक बार भी नहीं हुआ, तो मान्यता है कि शवों की आत्माएं अधूरी रह जाती हैं और मोक्ष नहीं मिल पाता। यह परंपरा न सिर्फ धार्मिक है, बल्कि काशी की आध्यात्मिक ऊर्जा को संतुलित करने के लिए भी आवश्यक मानी जाती है।
श्मशान के संतों की मान्यता
यह परंपरा अघोरी संप्रदाय और डोम समाज के लोगों द्वारा निभाई जाती है। अघोरी मानते हैं कि यह अनुष्ठान महादेव की तंत्र साधना का हिस्सा है, जिसमें जीवन और मृत्यु के चक्र को समान रूप से स्वीकार किया जाता है। अगर यह परंपरा टूट गई, तो काशी का आध्यात्मिक संतुलन बिगड़ सकता है।
क्या होगा अगर मसान की होली नहीं हुई?
– ऐसा माना जाता है कि अगर यह अनुष्ठान नहीं हुआ, तो मणिकर्णिका घाट पर आने वाली आत्माओं को मोक्ष प्राप्ति में बाधा आ सकती है।
– काशी के आध्यात्मिक वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा का संचार हो सकता है।
– स्थानीय समाज में यह मान्यता है कि इससे शहर में अशांति और प्राकृतिक आपदाएं आ सकती हैं।
– डोम समाज और अघोरी संप्रदाय की आजीविका पर भी इसका असर पड़ेगा, क्योंकि यह परंपरा उनके सदियों पुराने धार्मिक रीति-रिवाजों से जुड़ी है।
पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र
आजकल यह उत्सव पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है, लेकिन इसके पीछे छिपा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व कहीं खोता जा रहा है। मसान की होली सिर्फ एक तमाशा नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के संतुलन की साधना है।
महादेव की अनंत लीला का हिस्सा
मसान की होली सिर्फ राख का खेल नहीं, बल्कि काशी के आध्यात्मिक चक्र को जीवित रखने वाला अनुष्ठान है। अगर यह परंपरा एक बार भी टूटी, तो इसका असर सिर्फ धर्म पर नहीं, बल्कि काशी की आत्मा पर भी पड़ेगा। यही कारण है कि यह अनुष्ठान हर साल पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ निभाया जाता है—चाहे समय बदले या युग। काशी में मृत्यु का उत्सव मनाना महादेव की अनंत लीला का हिस्सा है, और मसान की होली इसी लीला का जीवंत प्रमाण है।