India News (इंडिया न्यूज़), Divorce laws in Uttarakhand:  उत्तराखंड में यूसीसी लागू हो गई है। इसलिए अब नियम और प्रथाएं धार्मिक कानून की बजाय देश के कानून पर आधारित होंगी। शादी से लेकर तलाक तक के नियम अब सभी के लिए एक जैसे हैं। यूसीसी लागू होने के बाद सभी धर्मों के लिए कई चीजें बदल गई हैं, खासकर मुस्लिम और ईसाई समुदाय के लिए तलाक के नियम, जो अब तक धार्मिक कानून पर आधारित थे। आइए जानते हैं कि मुस्लिम और ईसाई धर्म में अब तक तलाक के नियम क्या थे और यूसीसी के बाद उनमें क्या बदलाव आया है। भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरिया) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 के तहत इस्लाम के लिए तलाक के अलग-अलग प्रकार हैं। जैसे तलाक-ए-अहसन या तलाक-ए-हसन। तलाक-ए-बिद्दत को 2019 में ही अपराध घोषित कर दिया गया था। लेकिन UCC के बाद ये सभी प्रकार मान्य नहीं होंगे।

UCC के बाद अब क्या बदलेगा?

अब मुस्लिम पुरुषों को भी हिंदू धर्म की तरह कानूनी प्रक्रिया से तलाक लेना होगा। महिलाओं को भी समान तलाक का अधिकार मिलेगा, यानी खुला और फसाख के मामलों में अधिक कानूनी सहायता मिलेगी। अब कोर्ट की मंजूरी के बिना तलाक मान्य नहीं होगा।

ईसाई धर्म में तलाक कैसे होता है?

भारत में ईसाई विवाह अधिनियम, 1872 के तहत तलाक कानूनी रूप से संभव है। कैथोलिक चर्च तलाक को मान्यता नहीं देता है, जबकि प्रोटेस्टेंट और रूढ़िवादी चर्च कुछ परिस्थितियों में तलाक की अनुमति देते हैं। ईसाई विवाह अधिनियम, 1872 के तहत अगर पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक चाहते हैं, तो उन्हें कम से कम 2 साल तक अलग रहना होगा।

यूसीसी से क्या बदलाव आए?

यूसीसी लागू होने के बाद अब ईसाइयों के लिए दो साल की अनिवार्यता खत्म हो सकती है। अब चर्च के कानूनों की जगह सभी धर्मों के लिए एक समान तलाक कानून लागू होंगे। कैथोलिक समुदाय में भी अब कानूनी तौर पर तलाक संभव होगा।

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सबके लिए एक नियम

यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता के तहत उत्तराखंड में तलाक के नियम अब सभी नागरिकों के लिए एक जैसे हो गए हैं, चाहे उनका धर्म, जाति या लिंग कुछ भी हो। यूसीसी का उद्देश्य विवाह, तलाक, विरासत और लिव-इन रिलेशनशिप जैसे मामलों में एकरूपता और लैंगिक समानता सुनिश्चित करना है। अब सभी धर्मों के लोगों के लिए तलाक की प्रक्रिया एक जैसी होगी। पहले धार्मिक या व्यक्तिगत कानूनों के अनुसार अलग-अलग प्रक्रियाएं होती थीं, जो अब एक हो गई हैं।

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क्या है समान नागरिक संहिता?

समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का मतलब है कि देश में रहने वाले सभी नागरिकों (हर धर्म, जाति, लिंग के लोगों) के लिए एक ही कानून होना चाहिए। अगर किसी राज्य में नागरिक संहिता लागू हो जाती है तो वहां विवाह, तलाक, बच्चे को गोद लेने और संपत्ति के बंटवारे जैसे सभी विषयों पर हर नागरिक के लिए एक ही कानून होगा। राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों का विस्तृत विवरण भारत के संविधान के भाग IV में दिया गया है और संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता प्रदान करना राज्य का कर्तव्य है।

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