India News (इंडिया न्यूज), Mana Avalanche: उत्तराखंड के चमोली जिले के माणा गांव में 28 फरवरी को आए भयावह हिमस्खलन (एवलांच) में बीआरओ के 8 श्रमिकों की मौत हो गई, जबकि 46 लोगों को सुरक्षित बचा लिया गया। इस हादसे में दो मजदूरों की हालत गंभीर बताई जा रही है। घटना के बाद से पूरे क्षेत्र में दहशत का माहौल बना हुआ है।

तीन दिन चला बचाव अभियान

हादसे के तुरंत बाद सेना, वायुसेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और आईटीबीपी की टीमें राहत और बचाव कार्य में जुट गईं। तीन दिनों तक चले रेस्क्यू ऑपरेशन में मौके पर फंसे 54 में से 46 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला गया। खराब मौसम और भारी बर्फबारी के कारण बचाव अभियान चुनौतीपूर्ण रहा, लेकिन सुरक्षाबलों ने कड़ी मेहनत कर अधिकतर लोगों की जान बचा ली। इस दुर्घटना के कारणों की विस्तृत जांच के लिए चमोली के जिलाधिकारी डॉ. संदीप तिवारी ने मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश दिए हैं। उन्होंने जोशीमठ के एसडीएम को इस जांच का प्रभारी नियुक्त किया है। यह जांच हिमस्खलन के वैज्ञानिक और प्रशासनिक पहलुओं को ध्यान में रखकर की जाएगी, जिससे भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचाव के उपाय किए जा सकें।

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क्या सिर्फ प्राकृतिक आपदा थी यह घटना?

हालांकि हिमस्खलन एक प्राकृतिक आपदा है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इस घटना में कुछ अन्य पहलुओं की भी समीक्षा जरूरी है। जलवायु परिवर्तन और बर्फबारी के बढ़ते खतरों को ध्यान में रखते हुए, इस क्षेत्र में सुरक्षा मानकों की जांच और सुधार की आवश्यकता है।

माणा में एवलांच से क्यों बढ़ा खतरा?

माणा, जोकि भारत का अंतिम गांव है, एक ऊंचाई वाला क्षेत्र है और यहां भारी बर्फबारी आम बात है। हाल ही में मौसम में अचानक आए बदलाव, ग्लेशियरों के खिसकने और ऊंचे इलाकों में हो रहे निर्माण कार्यों से हिमस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं। मजिस्ट्रेटी जांच से यह स्पष्ट हो सकेगा कि क्या इस घटना में मानवीय कारण भी जिम्मेदार थे या यह पूरी तरह प्राकृतिक आपदा थी।

राज्य सरकार और बीआरओ प्रशासन ने मृतकों के परिवारों को हर संभव सहायता का आश्वासन दिया है। इसके साथ ही, श्रमिकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भविष्य में एहतियाती कदम उठाने की बात कही गई है। यह हादसा एक बार फिर हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ते प्राकृतिक खतरों और सुरक्षा उपायों की जरूरत को उजागर करता है।

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