India News (इंडिया न्यूज), Uniform Civil Code: उत्तराखंड में इस साल लागू हुआ समान नागरिक संहिता (UCC) के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को 4 हफ्ते के अंदर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की हाईकोर्ट की खंडपीठ ने सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा है कि क्या वह UCC के विवादास्पद प्रावधानों में संशोधन पर विचार कर सकती है।

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कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि क्या राज्य सरकार नए सुझावों पर विचार कर सकती है और जरूरत पड़ने पर कानून में संशोधन कर सकती है। मेहता ने जवाब देते हुए कहा कि सभी सुझावों का हमेशा स्वागत है। राज्य सरकार इस पर विचार करने के लिए तैयार है। मुख्य स्थायी अधिवक्ता सीएस रावत ने बताया कि कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से मौखिक रूप से अनुरोध किया कि वह विधानसभा से अपेक्षित संशोधनों को लागू करने की अपेक्षा करें।

इन अधिकारों का हनन

बता दें कि 27 फरवरी को नैनीताल निवासी प्रो. उमा भट्ट व अन्य की जनहित याचिकाओं और लिव-इन जोड़ों की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने दलील दी कि UCC में लिव-इन रिलेशनशिप का अनिवार्य पंजीकरण निजता के अधिकार का उल्लंघन है। इस पर कोर्ट ने कहा कि समाज में लिव-इन रिलेशनशिप तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन अब भी पूरी तरह स्वीकार्य नहीं हैं। कानून का मकसद केवल बदलते समय के साथ तालमेल बिठाना और ऐसे संबंधों से पैदा हुए महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

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याचिकाकर्ताओं ने दलील में कहा कि UCC सरकार को लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले व्यक्तियों की जांच, प्राधिकरण और सजा के लिए सख्त वैधानिक तंत्र प्रदान करता है। इस कानून को महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए जरूरी बताया जा रहा है, लेकिन आलोचकों का मानना ​​है कि यह बहुसंख्यक समाज के मानदंडों का पालन नहीं करने वाली महिलाओं और जोड़ों के खिलाफ उत्पीड़न और हिंसा को बढ़ावा देने वाला है।

दिए ये तर्क

आपको बता दें कि याचिकाकर्ताओं ने इस मामले में तर्क देते हुए कहा कि आधार विवरण की अनिवार्यता SC के पुट्टुस्वामी निर्णय का उल्लंघन है, जिसमें निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया गया था। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि सरकार इस मामले को गंभीरता से देख रही है और इस कानून के तहत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। हाईकोर्ट ने आदेश में यह दर्ज करने पर सहमति जताई कि अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई की जाती है तो उसे कोर्ट जाने की पूरी आजादी है। कोर्ट के इस निर्देश के बाद अब राज्य सरकार को 4 सप्ताह के भीतर UCC के प्रावधानों पर अपना रुख स्पष्ट करना होगा। यह मामला उत्तराखंड में लागू समान नागरिक संहिता की संवैधानिक वैधता और इसके प्रभावों पर व्यापक बहस को जन्म दे सकता है।