India News (इंडिया न्यूज़),Uttarakhand: प्रकृति और जलवायु को संजोकर रखने वाला हिमालय ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से काफी जूझ रहा है। बता दें कि मौसम में परिवर्तन की वजह से ग्लेशियर पीछे की तरफ खिसक रहे हैं। यही बड़ी वजह है कि नवंबर समाप्त होने वाला है और चोटियां बर्फहीन हैं। इसरो ने इस समस्या का दूसरा पहलू अधिक भयावह बताया है।
झील का सर्वे कर लौटी
आपको बता दें कि इसरो का कहना है कि ग्लेशियरों के पिघलने के साथ ही हिमालय के ऊपरी हिस्सों में कई झीलें बन गई हैं, जिनका आकार साल दर साल काफी बढ़ रहा है। अगर आने वाले समय में ये झीलें टूटती हैं तो केदारनाथ जैसी आपदा हिमालय के किसी भी क्षेत्र में आ सकती है। इनमें चमोली जिले में धौली गंगा बेसिन में रायकाना ग्लेशियर का वसुधरा ताल भी शामिल है, जिसका आकार खतरनाक ढंग से बढ़ रहा है। हाल में वाडिया संस्थान की 1 टीम झील का सर्वे कर लौटी है।
तेजी से आकार बढ़ रहा है
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और एडीसी फाउंडेशन की उत्तराखंड डिजास्टर एंड एक्सीडेंट एनालिसिस इनिशिएटिव (यूडीएएआई) रिपोर्ट में बताया गया है कि हिमालय में मौजूद ग्लेशियरों पर संकट अधिक मंडरा रहा है। ग्लेशियर बहुत तेजी से पिघल रहे हैं यानी साल दर साल पीछे जा रहे हैं, जिससे हिमालयी क्षेत्र में मौजूद हिम झीलों का तेजी से आकार बढ़ रहा है।
घटनाएं होती हैं
उत्तराखंड में लगभग 1400 छोटे-बड़े ग्लेशियर हैं। इनमें 500 वर्गमीटर आकार से बड़ी करीब 1266 झीलें हैं। उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ने इसरो के सेटेलाइट डाटा के आधार पर उत्तराखंड में 13 ग्लेशियर झीलों को चिह्नित भी किया है, जिनमें 5 बेहद संवेदनशील हैं, इनमें वसुधरा झील भी है।वैज्ञानिकों के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग और सतह के बढ़ते तापमान से उत्तराखंड में ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (हिमनद झील विस्फोट बाढ़) की घटनाएं होती हैं।
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